Adrak ke Fayde |turmeric and ginger benefits, adrak उपयोग 

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Adrak ke Fayde
Adrak ke Fayde

अदरक तथा हल्दी के बहुत बड़े फायदे हैं हल्दी को यदि दूध में मिलाकर पी लो तो वह आपके शरीर की थकान को दूर कर देती है ठीक है अगर कहीं चोट लगे तो वहां हल्दी के दूध पीने से हल्दी शरीर में एंटी ऑप्शन का काम करती है जिससे थकान दूर हो जाती है अदरक के बहुत सारे गुनाह जुखाम खांसी खांसी नजला बहुत सारी बीमारियों में यूज किया जाता है

कच्चा अदरक खाने के फायदे और नुकसान खाली पेट अदरक खाने के फायदे ज्यादा अदरक खाने से क्या होता है कच्चा अदरक खाने से क्या होता है कच्चा अदरक खाने के नुकसान गुड़ और अदरक के फायदे

अदरक के रस के फायदे, turmeric and ginger benefits

भारतवर्ष में संस्कृत में इसे आर्द्रक कहते हैं । स्वाद बढ़ाने के लिए अदरक को प्रायः सभी जानते हैं। जमीन में कंद के रूप में उपजाई जाने वाली यह अदरक ही सूखने पर सोंठ कहलाती है। अदरक की ताजी चटनी एवं अचार तथा आयुर्वेदिक औषधीय प्रयोग में भी बड़ी गुणकारी है। घरेलू नुस्खों में भी बड़ी उपयोगी है।

Adrak  (.turmeric and ginger benefits)गुण-धर्म-

Adrak ke Fayde

उपयोगिता की दृष्टि से अदरक एवं सोंठ दोनों के समान गुण हैं। आयुर्वेदिक मत के अनुसार रुचिकारक, खाँसी व श्वास रोग को नष्ट करता है। वात, पित्त और कफ प्रकोपों को शांत करने का गुण है। जठराग्नि को बढ़ाकर पाचनशक्ति को सुदृढ़ करता है। विशेषकर वात के प्रकोप को समाप्त करता है रक्तपित्त, जलन, पांडुरोग और कुष्ठ रोग, मूत्रकृच्छ्र रोग में तथा ग्रीष्म एवं शरद ऋतु में अदरक अपथ्य है।

अदरक का सेवन शहद के साथ करने से कफ संबंधी रोगों में, वातविकारों में नीबू के रस के साथ तथा पित्तजनक विकारों में मिसरी के साथ लेने से लाभ पहुँचाता है।

खाली पेट अदरक खाने के फायदे

अदरक के रस को गरम कर, सेवन करने से सरदी-जुकाम, खाँसी में तथा पुराने गुड़ के साथ सेवन करने से शरीर की सूजन में लाभदायक होता है। अदरक की प्रकृति उष्ण होती है। जुकाम,

कानों के दरद, संधिवात, गैस, खाँसी, बुखार, हृदयरोग में हितकारक है । यह एक एंटी-ऑक्सीडेंट एवं जीवाणुनाशक औषधि है। इससे रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। यह बड़ी आँत में सड़न को रोकती है। आँव, बड़ी आँत की सूजन, कब्ज इत्यादि रोगों में लाभदायक है।

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जुकाम एवं ज्वर में – अदरक 5 ग्राम या सोंठ 2 ग्राम, तुलसी के पत्ते 20 नग, 5 नग काली मिर्च पीसकर, 5 ग्राम सेंधा नमक, 250 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बना लें तथा छानकर उसमें स्वादानुसार शहद घोलकर गरम काढ़ा पी लें। 3 दिन तक यह प्रयोग करने से जुकाम ठीक हो जाता है। उलटी, दस्त, जुकाम एवं ज्वर में 3-4 दिनों तक ठोस भोजन छोड़ देना अधिक हितकर होता है। तीन दिनों तक फलों का रस, सब्जियों का सूप इत्यादि पेय आहार के रूप में लेने से तीव्र रोगों में लाभ शीघ्रता से मिलता है। है

बहुमूत्र पर – 

बहुमूत्र रोग में अदरक के रस में 2 चम्मच मिसरी पीसकर मिला लें तथा सुबह शाम सेवन करने से लाभ मिलता है। पेट में कीड़े होने पर – दिन में 2 बार एक

एक चम्मच अदरक का रस निकालकर पिलाएँ । ब्रोंकाइटिस में –

 अदरक के रस के साथ शहद का नित्य प्रयोग करने से यह कफ को पतला कर बाहर निकालता है, जिससे साइनोसाइटिस एवं ब्रोंकाइटिस तथा लेरंजाइटिस में लाभ पहुँचता है।

खाँसी एवं कफ संबंधी विकारों में– 

एक चम्मच अदरक के रस के साथ बराबर मात्रा में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार सेवन कराने से लाभ मिलता है। भोजन में कफ बढ़ाने वाले आहार मैदा, चावल, दही, चीनी एवं चिकनाई इत्यादि से परहेज रखें। कान के विकारों में- कान में साँय-साँय की

आवाज आना, कान में दरद, सूजन इत्यादि में अदरक का रस हलका गरम कर रूई के सहारे 2-3 बूँद टपकाएँ ।

उलटी एवं जी मिचलाने में दो चम्मच अदरक के रस में समान मात्रा में प्याज का रस देने से । उलटी बंद हो जाती है।

वातनाशक तेल (मालिश के लिए ) – मांसपेशियों एवं जोड़ों के दरद में वातनाशक मालिश का तेल बनाने के लिए तिल का तेल 500 मि.ली. लेकर उसमें उतनी ही मात्रा में अदरक रस मिलाकर मंद आग पर गरम कर रस को जल जाने दें। जब रस सूख जाए तो तेल शेष रह जाएगा। तब इस को उतारकर छान लें और ठंढा कर काँच की शीशी में भरें। यह तेल मालिश के लिए प्रयोग में लाएँ ।

दाँतों के दरद में – अदरक की छोटी-छोटी कतरनों पर चुटकीभर सेंधा नमक डालकर दाँतों के बीच दबाकर धीरे-धीरे चबाएँ। इससे वात के कारण होने वाला दाँत का दरद मिटता है।

मंदाग्नि एवं अरुचि में –

 अदरक के महीन टुकड़ों पर सेंधा नमक बुरक दें एवं नीबू का रस निचोड़ दें। भोजन के आधा घंटे पूर्व इसका सेवन करने से जठराग्नि तेज होती है, भूख बढ़ती है, अरुचि मिटती है, पाचक रसों का स्राव बढ़ता है। दस्तों में भी लाभप्रद है। सोंठ के प्रयोग

जलोदर, बवासीर और कब्ज में प्रभावशाली है। सोंठ कफ एवं वातनाशक होती है। पित्त का नाश करती है। हृदय, मस्तिष्क, उदर एवं मूत्रपिंड पर अनुकूल प्रभावकारी होती है। यह आयुर्वेदिक योग त्रिकुटा (सोंठ, काली मिर्च और पीपली) का प्रधान अंग है। पाचक तथा शक्तिवर्द्धक होती है। पाचनक्रिया को शुद्ध करती है, पेट में वायु का प्रकोप नहीं होने देती। विशेष रूप से जीर्ण संधिवात में लाभ देती है। पेट के अफारे के कारण हृदय में दरद हो तो सोंठ देने से लाभ मिलता है।

पक्षाघात में – 

सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में सेंधा नमक महीन पीसकर सुँघाने से लाभ मिलता है।

विषम ज्वर में बकरी के दूध से 1.5 ग्राम सोंठ का चूर्ण दिन में दो बार देने से ज्वर मिटता है।

आधाशीशी में आधे सिर में तेज दरद होने पर सोंठ को पत्थर पर घिसकर लेप बनाकर माथे पर लेप करने से दरद दूर होता है या सोंठ को बकरी के दूध में घिसकर नाक में 1-2 बूँद टपका देने से सिरदरद से राहत मिलती है।

कच्चा अदरक खाने के फायदे और नुकसान

हिचकी में – 

(1) सोंठ 1 ग्राम और हरड़ 3 ग्राम चूर्ण को पानी में मिलाकर लुगदी खाने के बाद गरम पानी एक गिलास सेवन करने से श्वास रोग एवं हिचकी दूर होती है।

(2) सोंठ, आँवला और पीपली का चूर्ण शहद के साथ चटाने से हिचकी रुक जाती है।

(3) सोंठ को बकरी के गरम दूध के साथ सेवन कराने से हिचकी मिटती है।

हाथीपॉव (श्लीपद) में –

 नित्य गोमूत्र के

साथ 1.5 ग्राम सोंठ का चूर्ण लेने से श्लीपद में लाभ

होता है।

मूत्रकृच्छ्र-

 सोंठ और गोक्षरू के क्वाथ में एक ग्राम जवाखार मिलाकर प्रातः काल नित्य सेवन करने से लाभ होता है।

संग्रहणी – 

नियमित रूप से 40 दिनों तक कच्चे बेल का गूदा 20 ग्राम लेकर उसमें 2 ग्राम सोंठ और 10 ग्राम गुड़ मिलाकर एक गिलास मट्ठा के साथ पीने से संग्रहणी रोग दूर होता है।

एवं हैजा में – 

बेल और सोंठ का काढ़ा बनाकर पिलाने से हैजा एवं उलटी में लाभ होता है।

कष्टार्तव में मासिकधर्म की पीड़ा में 2 ग्राम — 

सोंठ और 10 ग्राम गुड़ को पानी में डालकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है। सावधानी

पिराजनित रोगों में अदरक एवं सोंठ का प्रयोग विशेषकर गरमी के दिनों में न करें। O

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